एक्युप्रेशर चिकित्सा क्या होती है और इसके क्या लाभ हैं

एक्युप्रेशर चिकित्सा-शरीर के छोटे से छोटे भाग का संबंध पूरे शरीर से होता है, इसी कारण जब शरीर के किसी भाग में ज्यादा परेशानी होती है तो हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।

शरीर में प्रत्येक अंग, उपांग,ग्रथियों आदि से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु हमारी हथेली और पगथली में होते हैं। जिस प्रकार किसी कंप्यूटर में सारा नियन्त्रण CPU (CENTRAL PROCESSING UNIT) से होता है। ठीक उसी प्रकार ये प्रतिवेदन बिन्दु शरीर के किसी न किसी भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

एक्युप्रेशर चिकित्सा क्या होती है और इसके क्या लाभ हैं
एक्युप्रेशर चिकित्सा क्या होती है और इसके क्या लाभ हैं

सुजोक और रिफ्लेक्सोलाजी एक्युप्रेशर के सिद्धान्तानुसार हथेली और पगथली में दबाव देने पर जिन स्थानों पर दर्द होता है, उसका मतलब उन स्थानों पर विकार अथवा अनावश्यक विजातीय तत्त्वों का जमाव हो होता है, परिणाम स्वरूप शरीर में प्राण ऊर्जा के प्रवाह में अवरोध हो जाता है। ये प्रतिवेदन बिन्दु कंप्यूटर के माउस, कीबोर्ड या अन्य उपकरणों के भांति शरीर के अलग-अलग भागों से संबंधित होते हैं। जिस प्रकार CPU में खराबी होने से उपकरण तक बिजली का प्रवाह सही ढंग से नहीं पहुँचता, ठीक उसी प्रकार इन प्रतिवेदन बिन्दुओं पर विजातीय तत्त्वों के जमा होने से संबंधित अंग, उपांग, अवयवों आदि में प्राण ऊर्जा के प्रवाह में अवरोध हो जाने से व्यक्ति रोगी बनने लगता है।

एक्युप्रेशर से रोग का निदान कैसे करते हैं-

हथेली और पगथली में आगे पीछे छोटे से छोटे भाग में अर्थात पूरी हथेली और पगथली के पूरे क्षेत्रफल में अंगुलियों या अंगूठे से हम सहनीय गहरा दबाव देने पर जहाँ-जहाँ जैसा-जैसा दर्द आता है, वे सारे दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु एक्युप्रेशर के सिद्धान्तानुसार रोग से संबंधित होते हैं। अर्थात् वे शरीर में रोग के परिवार के सदस्य होते हैं।

एक्युप्रेशर द्वारा रोगों का निदान –

  1. प्रत्येक व्यक्ति की हथेली और पगथली उसके स्वयं की होती है। अतः इस विधि द्वारा उस व्यक्ति का स्वयं से संबंधित शरीर के सभी रोगों का निदान होता है। जबकि लक्षणों पर आधारित निदान पूर्ण शरीर का नहीं हो सकता। किसी भी दो हृदय रोगियों, मधुमेह के रोगियों अथवा और किसी नाम से पुकारे जाने वाले रोगियों के रोग का परिवार कभी भी पूर्ण रूप से एक सा नहीं हो सकता। अतः लक्षणों एवं यंत्रों पर आधारित रोग का निदान करते समय सहयोगी रोगों की उपेक्षा होना स्वाभाविक है। परन्तु एक्युप्रेशर पद्धति द्वारा जितना सही और विश्वसनीय निदान होता है, अन्यत्र प्रायः संभव नहीं होता।
  2. कभी-कभी रोग के कारण कुछ और होते हैं और उसके लक्षण कहीं दूसरे अंगों पर प्रकट होते हैं। जैसे मधुमेह का कारण पाचन तंत्र का बिगड़ना भी हो सकता है, न कि पेन्क्रियाज का खराब होना। हृदय शूल का कारण छोटी आंत में बनी गैस का प्रभाव भी हो सकता है, न कि हृदय की कमजोरी का होना। अस्थमा का कारण बड़ी आंत का बराबर कार्य न करना, न कि फेफड़ों का खराब होना। जब निदान ही अधूरा होता है तो उपचार कैसे स्थायी एवं प्रभावशाली हो सकता है? आधुनिक चिकित्सक ऐसे रोगों को प्रायः असाध्य बतला देते हैं। परन्तु हथेली और पगथली के समस्त प्रतिवेदन बिन्दुओं पर दबाव देने से जहाँ ज्यादा दर्द आता है, वे ही रोग का मुख्य कारण होते हैं, भले ही रोग के लक्षण कहीं अन्य भाग में प्रकट क्यों न हों? इसी कारण एक्युप्रेशर असाध्य रोगों के निदान की प्रभावशाली चिकित्सा पद्धति होती है।
  3. रोग की प्रारम्भिक अवस्था में ही इस विधि द्वारा निदान संभव होता है। जहाँ-जहाँ पर दबाव देने से दर्द आता है, वे सभी प्रतिवेदन बिन्दु भविष्य में शरीर में रोग की स्थिति बनाते हैं। यदि रोग हो गया हों तो वे उसके कारण होते हैं, परन्तु यदि रोग के लक्षण प्रत्यक्ष बाह्य रूप से प्रकट न हुयें हों तो, भविष्य में होने वाले रोगों का कारण उन्हीं प्रतिवेदन बिन्दुओं में से होता है। रोग आने से पूर्व उसकी प्रारम्भिक अवस्था का निदान जितना सरल इस पद्धति द्वारा होता है, उतना प्रायः अन्यत्र कठिन होता है।
  4. शरीर में रोग कभी अकेला आ ही नहीं सकता। जिन लक्षणों के आधार पर आज रोगों का नाम करण किया जाता है, वे वास्तव में रोगों के नेता होते हैं, जिन्हें सैकड़ों अप्रत्यक्ष रोगों का समर्थन और सहयोग प्राप्त होता है। परन्तु इस विधि द्वारा रोगों के पूरे परिवार का निदान होने से निदान सही और विश्वसनीय होता हैं, जो अन्य चिकित्सा पद्धतियों में प्रायः संभव नहीं होता।
  5. हथेली और पगथली में दबाव देने पर जितने कम प्रतिवेदन बिन्दुओं पर अथवा जितना कम दर्द आता है, उतना ही व्यक्ति स्वस्थ होता है। जितने ज्यादा दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु उतना पुराना रोग और स्वास्थ्य खराब होता है। इस प्रकार इस निदान पद्धति द्वारा जो रोग आधुनिक पेथालोजिकल टेस्टों अथवा यंत्रों की पकड़ में नहीं आते, उन रोगों के कारणों का सरलता पूर्वक निदान किया जा सकता है। उपर्युक्त निदान अधिक सही और विश्वसनीय होता है। अतः उस निदान पर आधारित उपचार-प्रभावशाली, दुष्प्रभावों से रहित और अल्पकालीन होता है, जिस पर किसी को भी आंशका नहीं होनी चाहियें।

निदान बिल्कुल सरल, सस्ता, सहज, पूर्ण अहिंसक, दुष्प्रभावों से रहित, स्वावलम्बी, सर्वत्र अपने साथ उपलब्ध होता है। शरीर विज्ञान के विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं होने से सभी व्यक्ति स्वयं भी आत्मविश्वास के साथ उपचार कर सकते हैं। पूरे शरीर का निदान होने से शरीर के साथ- साथ, मन और वाणी के विकारों का भी, निदान करने वाला एवं अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का सरलतम निदान इस पद्धति द्वारा होता है।

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निदान में मूल सिद्धान्तों की उपेक्षा अनुचित-

आजकल हम आधुनिक चिकित्सा पद्धति के निदान से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि जब तक उनके द्वारा रोग प्रमाणित नहीं हो जाता, तब तक हम रोग को रोग ही नहीं मानते। अधिकांश एक्युप्रेशर चिकित्सक भी प्रायः उन्हीं रोगों से संबंधित प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं पर उपचार कर रोगी को राहत पहुँचाने तक ही अपने आपको सीमित रखते हैं। सुजोक और रिफ्लोक्सोलोजी के चित्रों में बतलाये गये प्रमुख बिन्दुओं में दर्द की स्थिति देख अधिकांश एक्युप्रेशर चिकित्सक भी कभी-कभी
रोग के नाम से निदान करते संकोच नहीं करते। जैसे किसी व्यक्ति के हृदय के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दु पर दबाव देने से दर्द आने की स्थिति में उसे हृदय का रोगी कह देते हैं। परन्तु ऐसा सदैव सही नहीं होता। हृदय में रोग होने पर निश्चित रूप से हृदय के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दु पर दबाने से दर्द आता है।
परन्तु इसका विपरीत कथन कभी-कभी गलत भी हो सकता है, क्योंकि उस प्रतिवेदन बिन्दु का शरीर के अन्य भागों से भी कुछ न कुछ संबंध अवश्य होता है। जैसे किसी व्यक्ति के पिता की मृत्यु होने पर पुत्र रोता है। इस कारण पुत्र को किसी अन्य कारण से रोते हुये देख यह कहना कि क्या आपके पिताजी की मृत्यु हो गयी है? कहाँ तक तर्क संगत है? अतः एक्युप्रेशर की इस पद्धति में आधुनिक चिकित्सा द्वारा कथित रोगों के नाम से निदान करना उसके मूल सिद्धान्तों के विपरीत होता है। निदानकत्र्ता मात्र इतना कह सकता है कि, दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु, शरीर में उपस्थित रोग का प्रतिनिधित्व करते हैं, भले ही वे किसी भी नाम से क्यों न पुकारे जाते हों।

एक्युप्रेशर द्वारा उपचार की विधि-


हथेली और पगथली के सभी भागों में दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दुओं का पता लगाने के पश्चात्, प्रत्येक दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु पर दिन में एक या दो बार बीस से तीस सैकण्ड तक, सभी प्रतिवेदन बिन्दुओं पर जमा हुये विजातीय पदार्थों को दूर करने हेतु, अपनी अंगुलियों और अंगूठे से सहनीय घुमावदार दबाव देने से, धीरे-धीरे विजातीय तत्त्व वहाँ से दूर होने लगते हैं। परिणाम स्वरूप शरीर के संबंधित रोग ग्रस्त भागों में प्राण ऊर्जा का प्रवाह नियमित और संतुलित होने लगता है तथा रोगी रोग मुक्त होने लगता है, तथा प्रत्यक्ष रोग न भी हो तो भविष्य में रोग होने की सम्भावनाएँ नहीं रहती है।उपचार यथा संभव साधक को स्वयं ही करना चाहिये। स्वयं द्वारा निदान और उपचार करने से व्यक्ति सभी दर्दस्थ प्रतिवेदन बिन्दुओं पर समान दबाव दे सकता है और रोग में जैसे-जैसे राहत मिलती जाती है, उसका आत्म विश्वास और सजगता बढ़ती जाती है। दूसरा व्यक्ति प्रायः सभी दर्दस्थ बिन्दुओं पर दबाव नहीं देता। अतः यथा संभव जितना उपचार रोगी स्वयं कर सकें, उतना तो कम से कम उसको स्वयं ही करना चाहिये, अन्य साधक तथा चिकित्सक का रोग से संबंधित प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं के दबाव हेतु शीध्र राहत मिलने तक ही सहयोग लेना चाहिए। क्योंकि अधिकांश चिकित्सक भी एक्युप्रेशर सिद्धान्तों के अनुसार न तो रोगों का पूर्ण निदान ही करते हैं और न उपचार। आधुनिक चिकित्सा के निदान को आधार मानकर ही प्रायः नामधारी रोगों के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं का उपचार करते हैं। सहयोगी रोगों की उपेक्षा करने से उनका उपचार कभी-कभी आंशिक और अस्थायी भी होता है

एवं अधिक समय ले सकता है।
परन्तु आजकल हम नामधारी रोग को सीधा नियन्त्रण में करने का प्रयास करते हैं, जो न्यायोचित नहीं होता। सहयोगियों को दूर किये बिना जिस प्रकार नेता पर नियन्त्रण करना कठिन होता है। प्रायः हम अखबारों में पढ़ते हैं और टी.वी. पर देखते हैं कि प्रदर्शनों के समय प्रदर्शनकारियों के नेता को पुलिस सीधा कैद नहीं करती। पहले प्रदर्शनकारियों को प्रार्थना कर शान्त करने का प्रयास करती है, फिर लाठी चलाती है, अश्रु गैस छोड़ती हैंऔर जब सारी भीड़ चली जाती है तो नेता को आसानी से कैद किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार रोग के परिवार के सहायक रोगों से संबंधित सभी प्रतिवेदन बिन्दुओं का उपचार करने से मुख्य रोग की ताकत स्वतः समाप्त हो जाती है तथा वह शीघ्र नियन्त्रण में लाया जा सकता है। जिस प्रकार जनतंत्र में सहयोगियों का समर्थन न मिलने से नेता की ताकत समाप्त हो जाती है, नेता को पद त्याग करना पड़ता है। ठीक उसी प्रकार अप्रत्यक्ष सहयोगी रोगों के दूर हो जाने से मुख्य रोग से शीघ्र एवं स्थायी मुक्ति मिल जाती है। यही एक्युप्रेशर चिकित्सा का मूल सिद्धान्त है।

उपसंहार-


स्वास्थ्य विज्ञान जैसे विस्तृत विषय को सम्पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करना बड़ा कठिन है। फिर भी हिंसा द्वारा निर्मित दवाओं का उपयोग न लेने का संकल्प करने वाले प्रत्येक साधक को एक्युप्रेशर, सुजोक, शिवाम्बु, स्वर, स्फटिक, नाभि, खिंचाव, रेकी, मुद्राओं, प्राणिक-हिलींग, दूरस्थ,डाउजिंग, पिरामीड, सूर्य किरण, रंग एवं चुम्बक जैसी बिना दवा उपचार एवं स्वास्थ्य सुरक्षा की स्वावलंबी, प्रभावशाली, अहिंसात्मक, निर्दोष, दुष्प्रभावों से रहित चिकित्सा पद्धतियों की साधारण सैद्धान्तिक जानकारी अवश्य रखनी चाहिए ताकि वे स्वावलंबी बन समाधि में रह सके।

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